आजमगढ़: सिखों के पांचवे गुरु अर्जुन देव जी महाराज को मुगल बादशाह जहांगीर ने 1606 को लाहौर में शहीद कर दिया गया था। शहीदी के समय मिंया मीर ने गुरु अर्जुन देव जी से पूछा कि आपके शरीर पर छाले पड़ रहे हैं। इसके बावजूद आप शांत हैं। तब गुरु अर्जुन देव ने कहा था कि जितने जिस्म पर पड़ेंगे छाले, उतने सिख होंगे सिदक वाले। यानि मेरे शरीर में जितने छाले पड़ेंगे, उतरे हजारो-करोड़ों सदके वाले सिखों का जन्म होगा। सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव का शहीदी दिवस मंगलवार को नगर के मुख्य चौक पर चिलचिलाती धूप में राहगीरों को ठंडा शर्बत पीला कर मनाया गया।
शहर में चिलचिलाती धूप में काम से निकले हजारों की संख्या में लोगो को श्री गुरुनानक दरबार विठ्ठल घाट गुरुद्वारा के सेवादारों द्वारा गुरुप्रीत सिंह राजू के नेतृत्व में सुबह से शाम तक मीठे शरबत पिलाया गया। संगत ने छबील सेवा में योगदान दिया। इस मौके पर आने-जाने वाले राहगीरों ने मीठे पानी को पीकर गर्मी से कुछ राहत की सांस ली और छबील में पानी पीने वाले सभी महिलाएं व पुरुषों ने छबील लगाने वालों की लंबी उम्र की कामना करते हुए गुरू अर्जुन देव को याद किया।मीडिया से बातचीत में सेवादार गुरप्रीत सिंह राजू ने बताया कि गुरु अर्जुन देव सिखों के पांचवें गुरू थे। लाहौर में मुगल बादशाह जहांगीर ने घोर शारीरिक यातनाएं देकर वर्ष 1606 ई. में रावी नदी में उन्हें बहा दिया।
आज गुरु अर्जुन देव का 417 वां शहीदी दिवस है। उन्होंने कहा कि शहीदी दिवस को मीठे पानी वाला गुरुपर्व नहीं बल्कि शहादत के रूप में स्मरण करने का संकल्प लेने वाला पर्व बताया। इनका कहना है कि हर सिख को उनकी शहीदी से प्रेरणा लेनी चाहिए। उनकी शहादत को अपने जहन में रखना चाहिए। उनका इतिहास पढ़ना चाहिए ताकि जीवन में आने वाली किसी भी विषम परिस्थिति में अपने मार्ग से डगमगाएंगे नहीं। गुरु जी को गर्म तवे पर बैठाकर उन पर गर्म रेत डाला जाता रहा। इसके बावजूद वे शांत रहे। उनका शरीर तप रहा था लेकिन उनका मन अकाल पुरख से जुड़ा हुआ था। हमें भी उनकी तरह ही अडोल रहना चाहिए। उनकी शहादत को लासानी (अनोखी) शहादत कहा जाता है। सिख इतिहास में गुरु अर्जुन देव पहले सिख गुरु हुए। उनकी याद में ही छबील लगाई जाती है। जो मई की गर्मी में मानवता के नाते लोगों को शीतलता प्रदान करने की एक पहल है।